Subhashitam 7

Published on 11 March 2017 09:56 AM
वाचः शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
सर्वभूते दया शौचं एतच्छौचं पराऽर्थिनाम्॥

भावार्थ :— केवल परोपकार और परहित की भावना ही मनुष्य को पवित्र करती है। इसके अभाव मे मन, वाणी और इन्द्रियों की पवित्रता कोई महत्व नहीं रखती।

इसे और अधिक विस्तृत रूप में स्पष्ट करते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दूसरों के कल्याण को महत्व देने वाला मनुष्य ही सच्चे अर्थों में पवित्र होता है। बुरी संगति में रहकर भी ऐसे मनुष्य की आत्मा कलंकित नहीं होती।