Amarakosha - नाट्यवर्गः

Published on 20 August 2019 06:48 AM





निषादस्वरः. (1) - निषाद (पुं)

ऋषभस्वरः. (1) - ऋषभ (पुं)

गान्धारस्वरः. (1) - गान्धार (पुं)

षड्जस्वरः. (1) - षड्ज (पुं)

मध्यमस्वरः. (1) - मध्यम (पुं)

धैवतस्वरः. (1) - धैवत (पुं)

1.7.1.1 - निषादर्षभगान्धारषड्जमध्यमधैवताः





पञ्चमस्वरः. (1) - पञ्चम (पुं)

1.7.1.2 - पञ्चमश्चेत्यमी सप्त तन्त्रीकण्ठोत्थिताः स्वराः





सूक्ष्मध्वनिः. (1) - काकली (स्त्री)

1.7.2.1 - काकली तु कले सूक्ष्मे ध्वनौ तु मधुरास्फुटे





अव्यक्तमधुरध्वनिः. (1) - कल (पुं)

गम्भीरध्वनिः. (1) - मन्द्र (पुं)

अत्युच्चध्वनिः. (1) - तार (पुं)

1.7.2.2 - कलो मन्द्रस्तु गम्भीरे तारोऽत्युच्चैस्त्रयस्त्रिषु





1.7.2.3 - नृणामुरसि मध्यस्थो द्वाविंशतिविधो ध्वनिः





1.7.2.4 - स मन्द्रः कण्ठमध्यस्थस्तारः शिरसि गीयते





गीतवाद्यलयसाम्यध्वनिः. (1) - समन्वितलय (पुं)

वीणा. (2) - वीणा (स्त्री), वल्लकी (स्त्री)

1.7.3.1 - समन्वितलयस्त्वेकतालो वीणा तु वल्लकी





वीणा. (1) - विपञ्ची (स्त्री)

सप्ततन्त्रियुता वीणा-सितारः. (1) - परिवादिनी (स्त्री)

1.7.3.2 - विपञ्ची सा तु तन्त्रीभिः सप्तभिः परिवादिनी





वीणादिवाद्यम्. (1) - तत (नपुं)

मुरजादिवाद्यम्. (1) - आनद्ध (नपुं)

1.7.4.1 - ततं वीणादिकं वाद्यमानद्धं मुरजादिकम्





वंशादिवाद्यम्. (1) - सुषिर (नपुं)

कांस्यतालादिवाद्यम्. (1) - घन (नपुं)

1.7.4.2 - वंशादिकं तु सुषिरं कांस्यतालादिकं घनम्





चतुर्वाद्याः. (3) - वाद्य (नपुं), वादित्र (नपुं), आतोद्य (नपुं)

1.7.5.1 - चतुर्विधमिदं वाद्यं वादित्रातोद्यनामकम्





मृदङ्गः. (2) - मृदङ्ग (पुं), मुरज (पुं)

1.7.5.2 - मृदङ्गा मुरजा भेदास्त्वङ्क्यालिङ्ग्योर्ध्वकास्त्रयः





यशःपटहः. (2) - यशःपटह (पुं), ढक्का (स्त्री)

भेरी. (2) - भेरी (स्त्री), दुन्दुभि (पुं)

1.7.6.1 - स्याद्यशः पटहो ढक्का भेरी स्त्री दुन्दुभिः पुमान्





पटहः. (2) - आनक (पुं), पटह (पुं-नपुं)

वीणादिवादनम्. (1) - कोण (पुं)

1.7.6.2 - आनकः पटहोऽस्त्री स्यात्कोणो वीणादि वादनम्





वीणादण्डः. (2) - वीणादण्ड (पुं), प्रवाल (पुं)

वीणादण्डाधःस्थितशब्दगाम्भीर्यार्थचर्मावनद्धदारुभाण्डः. (2) - ककुभ (पुं), प्रसेवक (पुं)

1.7.7.1 - वीणादण्डः प्रवालः स्यात्ककुभस्तु प्रसेवकः





तन्त्रीहीन वीणा. (1) - कोलम्बक (पुं)

यत्र तन्त्र्यो निबध्यन्ते तस्योर्ध्वविभागः. (1) - उपनाह (पुं)

1.7.7.2 - कोलम्बकस्तु कायोऽस्या उपनाहो निबन्धनम्





वाद्यविशेषः. (4) - डमरु (पुं), मड्डु (पुं), डिण्डिम (पुं), झर्झर (पुं)

1.7.8.1 - वाद्यप्रभेदा डमरुमड्डुडिण्डिमझर्झराः





वाद्यविशेषः. (2) - मर्दल (पुं), पणव (पुं)

नर्तकी. (2) - नर्तकी (स्त्री), लासिका (स्त्री)

1.7.8.2 - मर्दलः पणवोऽन्ये च नर्तकीलासिके समे





विलम्बितनृत्यगीतवाद्यम्. (1) - तत्त्व (नपुं)

द्रुतनृत्यगीतवाद्यम्. (1) - ओघ (पुं)

मध्यसमयनृत्यगीतवाद्यम्. (1) - घन (नपुं)

1.7.9.1 - विलम्बितं द्रुतं मध्यं तत्त्वमोघो घनं क्रमात्





तालः. (2) - ताल (पुं), कालक्रियामान (नपुं)

गानतन्त्रीलयः. (1) - लय (पुं)

1.7.9.2 - तालः कालक्रियामानं लयः साम्यमथास्त्रियाम्





नृत्यम्. (6) - ताण्डव (पुं-नपुं), नटन (नपुं), नाट्य (नपुं), लास्य (नपुं), नृत्य (नपुं), नर्तन (नपुं)

1.7.10.1 - ताण्डवं नटनं नाट्यं लास्यं नृत्यं च नर्तने





नृत्यगीतवाद्यानाम् मेलनम्. (2) - तौर्यत्रिक (नपुं), नाट्य (नपुं)

1.7.10.2 - तौर्यत्रिकं नृत्यगीतवाद्यं नाट्यमिदं त्रयम्





स्त्रीवेषधारी पुरुषः. (3) - भ्रकुंस (पुं), भ्रुकुंस (पुं), भ्रूकुंस (पुं)

1.7.11.1 - भ्रकुंसश्च भ्रुकुंसश्च भ्रूकुंसश्चेति नर्तकः





अज्जुका. (2) - गणिका (स्त्री), अज्जुका (स्त्री)

1.7.11.2 - स्त्रीवेषधारी पुरुषो नाट्योक्तौ गणिकाज्जुका





भगिनीपतिः. (1) - आवुत्त (पुं)

विद्वान्. (1) - भाव (पुं)

जनकः. (1) - आवुक (पुं)

1.7.12.1 - भगिनीपतिरावुत्तो भावो विद्वानथावुकः





युवराजः. (2) - कुमार (पुं), भर्तृदारक (पुं)

1.7.12.2 - जनको युवराजस्तु कुमारो भर्तृदारकः





नाट्योक्तराजा. (2) - भट्टारक (पुं), देव (पुं)

राजपुत्री. (1) - भर्तृदारिका (स्त्री)

1.7.13.1 - राजा भट्टारको देवस्तत्सुता भर्तृदारिका





बद्धपट्टा राज्ञी. (1) - देवी (स्त्री)

राज्ञी. (1) - भट्टिनी (स्त्री)

1.7.13.2 - देवी कृताभिषेकायामितरासु तु भट्टिनी





अवध्यब्राह्मणादेर्दोषोक्तिः. (1) - अब्रह्मण्य (नपुं)

राज्ञः श्यालः. (1) - राष्ट्रिय (पुं)

1.7.14.1 - अब्रह्मण्यमवध्योक्तौ राजश्यालस्तु राष्ट्रियः





माता. (2) - अम्बा (स्त्री), मातृ (स्त्री)

राज्ञः बाला. (1) - वासू (स्त्री)

मान्यः. (2) - आर्य (पुं), मारिष (पुं)

1.7.14.2 - अम्बा माताथ बाला स्याद्वासूरार्यस्तु मारिषः





ज्येष्ठभगिनी. (1) - अत्तिका (स्त्री)

निर्वहणम्. (2) - निष्ठा (स्त्री), निर्वहण (नपुं)

1.7.15.1 - अत्तिका भगिनी ज्येष्ठा निष्ठानिर्वहणे समे





नीचां प्रत्याह्वानः. (1) - हण्डे (अव्य)

चेडीं प्रत्याह्वानः. (1) - हञ्जे (अव्य)

सखीं प्रत्याह्वानः. (1) - हला (अव्य)

1.7.15.2 - हण्डे हञ्जे हलाह्वाने नीचां चेटीं सखीं प्रति





नृत्यविशेषः. (2) - अङ्गहार (पुं), अङ्गविक्षेप (पुं)

मनोगतभावाभिव्यञ्जकम्. (2) - व्यञ्जक (पुं), अभिनय (पुं)

1.7.16.1 - अङ्गहारोऽङ्गविक्षेपो व्यञ्जकाभिनयौ समौ





अङ्गेन निवृत्तं भ्रूविक्षेपादिः. (1) - आङ्गिक (वि)

अन्तःकरणेन निष्पन्नं स्वेदरोमाञ्चादिः. (1) - सात्त्विक (वि)

1.7.16.2 - निर्वृत्ते त्वङ्गसत्त्वाभ्यां द्वे त्रिष्वाङ्गिकसात्त्विके





नवरसेष्वेकः. (6) - शृङ्गार (पुं), वीर (पुं), करुणा (स्त्री), अद्भुत (पुं), हास्य (पुं), भयानक (पुं)

1.7.17.1 - शृङ्गारवीरकरुणाद्भुतहास्यभयानकाः





नवरसेष्वेकः. (2) - बीभत्स (पुं), रौद्र (पुं)

शृङ्गाररसः. (3) - शृङ्गार (पुं), शुचि (पुं), उज्ज्वल (पुं)

1.7.17.2 - बीभत्सरौद्रौ च रसाः शृङ्गारः शुचिरुज्ज्वलः





वीररसः. (2) - उत्साहवर्धन (पुं), वीर (पुं)

करुणरसः. (3) - कारुण्य (नपुं), करुणा (स्त्री), घृणा (स्त्री)

1.7.18.1 - उत्साहवर्धनो वीरः कारुण्यं करुणा घृणा





करुणरसः. (4) - कृपा (स्त्री), दया (स्त्री), अनुकम्पा (स्त्री), अनुक्रोश (पुं)

हास्यरसः. (1) - हस (पुं)

1.7.18.2 - कृपा दयानुकम्पा स्यादनुक्रोशोऽप्यथो हसः





हास्यरसः. (2) - हास (पुं), हास्य (नपुं)

बीभत्सरसः. (2) - बीभत्स (पुं), विकृत (वि)

1.7.19.1 - हासो हास्यं च बीभत्सं विकृतं त्रिष्विदं द्वयम्





अद्भुतरसः. (4) - विस्मय (पुं), अद्भुत (वि), आश्चर्य (वि), चित्र (वि)

भयानकरसः. (1) - भैरव (वि)

1.7.19.2 - विस्मयोऽद्भुतमाश्चर्यं चित्रमप्यथ भैरवम्





भयानकरसः. (6) - दारुण (वि), भीषण (वि), भीष्म (वि), घोर (वि), भीम (वि), भयानक (वि)

1.7.20.1 - दारुणं भीषणं भीष्मं घोरं भीमं भयानकम्





भयानकरसः. (2) - भयङ्कर (वि), प्रतिभय (वि)

रौद्ररसः. (2) - रौद्र (वि), उग्र (वि)

1.7.20.2 - भयङ्करं प्रतिभयं रौद्रं तूग्रममी त्रिषु





भयम्. (6) - दर (पुं), त्रास (पुं), भीति (स्त्री), भी (स्त्री), साध्वस (नपुं), भय (नपुं)

1.7.21.1 - चतुर्दश दरस्त्रासो भीतिर्भीः साध्वसं भयम्





मनोविकारः. (1) - विकार (पुं)

चित्तविकारप्रकाशककटाक्षादिः. (1) - अनुभाव (पुं)

1.7.21.2 - विकारो मानसो भावोऽनुभावो भावबोधकः





अहङ्कारः. (3) - गर्व (पुं), अभिमान (पुं), अहङ्कार (पुं)

अभिमानः. (2) - मान (पुं), चित्तसमुन्नति (स्त्री)

1.7.22.1 - गर्वोऽभिमानोऽहङ्कारो मानश्चित्तसमुन्नतिः





मदः. (6) - दर्प (पुं), अवलेप (पुं), अवष्टम्भ (पुं), चित्तोद्रेक (पुं), स्मय (पुं), मद (पुं)

1.7.22.2 - दर्पोऽवलोकोऽवष्टम्भश्चित्तोद्रेकः स्मयो मदः





परिभवः. (4) - अनादर (पुं), परिभव (पुं), परीभाव (पुं), तिरस्क्रिया (स्त्री)

1.7.22.3 - अनादरः परिभवः परीभावस्तिरस्क्रिया





परिभवः. (5) - रीढा (स्त्री), अवमानना (स्त्री), अवज्ञा (स्त्री), अवहेलन (नपुं), असूर्क्षण (नपुं)

1.7.23.1 - रीढावमाननावज्ञावहेलनमसूर्क्षणम्





लज्जा. (5) - मन्दाक्ष (नपुं), ह्री (स्त्री), त्रपा (स्त्री), व्रीडा (स्त्री), लज्जा (स्त्री)

पित्रादेः पुरतः जातलज्जा. (1) - अपत्रपा (स्त्री)

1.7.23.2 - मन्दाक्षं ह्रीस्त्रपा व्रीडा लज्जा सापत्रपान्यतः





क्षमा. (2) - क्षान्ति (स्त्री), तितिक्षा (स्त्री)

परद्रव्येच्छा. (1) - अभिध्या (स्त्री)

1.7.24.1 - क्षान्तिस्तितिक्षाभिध्या तु परस्य विषये स्पृहा





परोत्कर्षासहिष्णुत्वम्. (2) - अक्षान्ति (स्त्री), ईर्ष्या (स्त्री)

गुणेषु दोषारोपः. (1) - असूया (स्त्री)

1.7.24.2 - अक्षान्तिरीर्ष्यासूया तु दोषारोपो गुणेष्वपि





वैरम्. (3) - वैर (नपुं), विरोध (पुं), विद्वेष (पुं)

शोकः. (3) - मन्यु (पुं), शोक (पुं), शुच् (स्त्री)

1.7.25.1 - वैरं विरोधो विद्वेषो मन्युशोकौ तु शुक्स्त्रियाम्





पश्चात्तापः. (3) - पश्चात्ताप (पुं), अनुताप (पुं), विप्रतीसार (पुं)

1.7.25.2 - पश्चात्तापोऽनुतापश्च विप्रतीसार इत्यपि





कोपः. (7) - कोप (पुं), क्रोध (पुं), अमर्ष (पुं), रोष (पुं), प्रतिघ (पुं), रुट् (स्त्री), क्रुध् (स्त्री)

1.7.26.1 - कोपक्रोधामर्षरोषप्रतिघा रुट्क्रुधौ स्त्रियौ





सुस्वभावः. (1) - शील (नपुं)

चित्तविभ्रमः. (2) - उन्माद (पुं), चित्तविभ्रम (पुं)

1.7.26.2 - शुचौ तु चरिते शीलमुन्मादश्चित्तविभ्रमः





स्नेहः. (5) - प्रेमन् (पुं), प्रियता (स्त्री), हार्द (नपुं), प्रेमन् (नपुं), स्नेह (पुं)

स्पृहा. (1) - दोहद (नपुं)

1.7.27.1 - प्रेमा ना प्रियता हार्दं प्रेमस्नेहोऽथ दोहदम्





स्पृहा. (8) - इच्छा (स्त्री), काङ्क्षा (स्त्री), स्पृहा (स्त्री), ईहा (स्त्री), तृष् (स्त्री), वाञ्छा (स्त्री), लिप्सा (स्त्री), मनोरथ (पुं)

1.7.27.2 - इच्छा काङ्क्षा स्पृहेहा तृड्वाञ्छा लिप्सा मनोरथः





स्पृहा. (3) - काम (पुं), अभिलाष (पुं), तर्ष (पुं)

अतिप्रीतिः. (1) - लालसा (स्त्री-पुं)

1.7.28.1 - कामोऽभिलाषस्तर्षश्च सोऽत्यर्थं लालसा द्वयोः





धर्मविचारः. (2) - उपाधि (पुं), धर्मचिन्ता (स्त्री)

मनःपीडा. (1) - आधि (पुं)

1.7.28.2 - उपाधिर्ना धर्मचिन्ता पुंस्याधिर्मानसी व्यथा





स्मरणम्. (3) - चिन्ता (स्त्री), स्मृति (स्त्री), आध्यान (नपुं)

कामादिजस्मृतिः. (2) - उत्कण्ठा (स्त्री), उत्कलिका (स्त्री)

1.7.29.1 - स्याच्चिन्ता स्मृतिराध्यानमुत्कण्ठोत्कलिके समे





उत्साहः. (2) - उत्साह (पुं), अध्यवसाय (पुं)

अतिशयिताध्यवसायः. (2) - वीर्य (वि), अतिशक्तिभाज् (पुं)

1.7.29.2 - उत्साहोऽध्यवसायः स्यात्स वीर्यमतिशक्तिभाक्





कपटः. (6) - कपट (पुं-नपुं), व्याज (पुं), दम्भ (पुं), उपधि (पुं), छद्म (नपुं), कैतव (नपुं)

1.7.30.1 - कपटोऽस्त्री व्याजदम्भोपधयश्छद्मकैतवे





कपटः. (3) - कुसृति (स्त्री), निकृति (स्त्री), शाठ्य (नपुं)

अविमृष्टकृत्यम्. (2) - प्रमाद (पुं), अनवधानता (स्त्री)

1.7.30.2 - कुसृतिर्निकृतिः शाठ्यं प्रमादोऽनवधानता





कौतुकम्. (4) - कौतूहल (नपुं), कौतुक (नपुं), कुतुक (नपुं), कुतूहल (नपुं)

1.7.31.1 - कौतूहलं कौतुकं च कुतुकं च कुतूहलम्





स्त्रीणाम् श्रृङ्गारभावजाः क्रिया. (4) - विलास (पुं), बिब्बोक (पुं), विभ्रम (पुं), ललित (नपुं)

1.7.31.2 - स्त्रीणां विलासबिब्बोकविभ्रमा ललितं तथा





स्त्रीणाम् श्रृङ्गारभावजाः क्रिया. (3) - हेला (स्त्री), लीला (स्त्री), हाव (पुं)

1.7.32.1 - हेला लीलेत्यमी हावाः क्रियाः शृङ्गारभावजाः





क्रीडा. (6) - द्रव (पुं), केलि (स्त्री-पुं), परीहास (पुं), क्रीडा (स्त्री), लीला (स्त्री), नर्मन् (नपुं)

1.7.32.2 - द्रवकेलिपरीहासाः क्रीडा लीला च नर्म च





स्वरूपाच्छादनम्. (3) - व्याज (पुं), अपदेश (पुं), लक्ष्य (नपुं)

कन्दुकादिक्रीडनम्. (3) - क्रीडा (स्त्री), खेला (स्त्री), कूर्दन (नपुं)

1.7.33.1 - व्याजोऽपदेशो लक्ष्यं च क्रीडा खेला च कूर्दनम्





प्रस्वेदहेतोस्तापः. (3) - घर्म (पुं), निदाघ (पुं), स्वेद (पुं)

सात्विकभावः. (2) - प्रलय (पुं), नष्टचेष्टता (स्त्री)

1.7.33.2 - घर्मो निदाघः स्वेदः स्यात्प्रलयो नष्टचेष्टता





आकारगोपनम्. (2) - अवहित्था (स्त्री), आकारगुप्ति (स्त्री)

हर्षादिना कर्मसु त्वरणम्. (2) - संवेग (पुं), सम्भ्रम (पुं)

1.7.34.1 - अवहित्थाकारगुप्तिः समौ संवेगसंभ्रमौ





परस्यामर्षजनकहासम्. (1) - आच्छुरितक (नपुं)

ईषद् हासः. (2) - मनाक् (अव्य), स्मित (नपुं)

1.7.34.2 - स्यादाच्छुरितकं हासः सोत्प्रासः स मनाक्स्मितम्





मध्यमहासः. (1) - विहसित (नपुं)

रोमाञ्चः. (2) - रोमाञ्च (पुं), रोमहर्षण (नपुं)

1.7.35.1 - मध्यमः स्याद्विहसितं रोमाञ्चो रोमहर्षणम्





रोदनम्. (3) - क्रन्दित (नपुं), रुदित (नपुं), क्रुष्ट (नपुं)

मुखादिविकासः. (2) - जृम्भ (वि), जृम्भण (नपुं)

1.7.35.2 - क्रन्दितं रुदितम्क्रुष्टं जृम्भस्तु त्रिषु जृम्भणम्





अङ्गीकृतासम्पादनम्. (2) - विप्रलम्भ (पुं), विसंवाद (पुं)

धर्मादेश्चलनम्. (2) - रिङ्खण (नपुं), स्खलन (नपुं)

1.7.36.1 - विप्रलम्भो विसंवादो रिङ्गणं स्खलनं समे





निद्रा. (5) - निद्रा (स्त्री), शयन (नपुं), स्वाप (पुं), स्वप्न (पुं), संवेश (पुं)

1.7.36.2 - स्यान्निद्रा शयनं स्वापः स्वप्नः संवेश इत्यपि





अत्यन्तश्रमादिना सर्वेन्द्रियासामर्थ्यः. (2) - तन्द्री (स्त्री), प्रमीला (स्त्री)

क्रोधादिजनितभ्रूलता. (3) - भ्रकुटि (स्त्री), भ्रुकुटि (स्त्री), भ्रूकुटि (स्त्री)

1.7.37.1 - तन्द्री प्रमीला भ्रकुटिर्भ्रुकुटिर्भ्रूकुटिः स्त्रियाम्





क्रूरदृष्टिः. (1) - अदृष्टि (स्त्री)

स्वभावः. (2) - संसिद्धि (स्त्री), प्रकृति (स्त्री)

1.7.37.2 - अदृष्टिः स्यादसौम्येऽक्ष्णि संसिद्धिप्रकृती त्विमे





स्वभावः. (3) - स्वरूप (नपुं), स्वभाव (पुं), निसर्ग (पुं)

कम्पः. (1) - वेपथु (पुं)

1.7.38.1 - स्वरूपं च स्वभावश्च निसर्गश्चाथ वेपथुः





कम्पः. (1) - कम्प (पुं)

उत्सवः. (5) - क्षण (पुं), उद्धर्ष (पुं), मह (पुं), उद्धव (पुं), उत्सव (पुं)

1.7.38.2 - कम्पोऽथ क्षण उद्धर्षो मह उद्धव उत्सवः